सदियों से औरत अपने अस्तित्व के लिए लड़ाइयां लड़ती ही आ रही है। कभी किसी रूप में तो कभी किसी बात पर खुद की जगह बनाने के लिए क्रांति की तरह सामने आती रही है। हैरानी की बात यह है कि इस विषय पर अनगिनत लेख लिखे गए हैं अनगिनत बार चर्चाएं परिचर्चाएं, चलचित्र आदि तैयार कर समाज को इस विडंबना से बाहर निकालने की कोशिश की गई है पर फिर भी न जाने क्यों इंसान की बुद्धि के किसी कोने में वह संकीर्णता और छिछोरापन ज्यों का त्यों ही धरा है। लेकिन फिर भी औरत को ईश्वर ने नज़ाकत के साथ साथ इच्छा शक्ति, सहनशक्ति, धैर्य और साहस का वह अदभुत वरदान दिया है कि हम हमारे आस पास ऐसे अनेक उदाहरण देख सकते हैं जहां विभिन्न विप
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